देहरादून।चार दिवसीय छठ महापर्व की शुरुआत दीपावली के 6 दिन के बाद से शुरू होती है। इसमें सूर्य देव और षष्ठी देवी की पूजा का विशेष महत्व होता है। देहरादून में बिहारी महासभा ने छठ की तैयारियों को लेकर कार्यकारिणी की बैठक आहूत की गई बैठक में सर्वसम्मति से निर्णय लिया गया कि बिहारी महासभा हर वर्ष की भांति इस वर्ष भी छठ महापर्व का आयोजन करेगी ।लोक आस्था का महापर्व छठ पूजा का आयोजन इस बार बिहारी महासभा ने धूमधाम से मनाने का निर्णय लिया है । जिसकी तैयारी के लिए विभिन्न समितियों का गठन किया जा रहा है हर समिति में नामित सदस्य के पास अपनी जिम्मेवारी होगी जिसे उक्त सदस्यों को मौजूद रहकर पूरा करना है ।इस अवसर पर सभा के अध्यक्ष ललन सिंह ने बैठक को संबोधित करते हुए कहा कि मुख्य रूप से टपकेश्वर महादेव मंदिर/ प्रेम नगर /चंद्रबनी/ मालदेवता में मुख्य रूप से छठ पूजा का आयोजन करेगी । पूजा की तैयारी के लिए कार्य समिति गठित की गई है एवं सदस्यों को दायित्व बांटे गए हैं। महासभा की बैठक में तय किया गया है कि कार्यक्रम हर वर्ष की भांति इस वर्ष भी चंद्रबनी टपकेश्वर प्रेम नगर मालदेवता में कराया जाएगा ।
सचिव चंदन कुमार झा ने बताया कि दिवाली के बाद से ही छठ पर्व की तैयारियां शुरू हो जाती है। दिवाली के 6 दिन बाद छठ महापर्व बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है। विशेष रूप से पूर्वी उत्तर प्रदेश, बिहार, और झारखंड जैसे राज्यों में इस पर्व की धूम देखने को मिलती है। केवल भारत नहीं बल्कि छठ महापर्व की लोकप्रियता आज विदेशों तक देखने को मिलती है। छठ पूजा का व्रत कठिन व्रतों में से एक होता है। इसमें पूरे चार दिनों तक व्रत के नियमों का पालन करना पड़ता है और व्रती पूरे 36 घंटे का निर्जला व्रत रखती हैं। इस साल छठ व्रत की शुरुआत 17 नवंबर 2023 से नहाए खाय के साथ हो रही है। छठ पूजा में नहाय खाय, खरना, अस्ताचलगामी अर्घ्य और उषा अर्घ्य का विशेष महत्व होता है।
बैठक में कहा कि छठ पूजा के कई महत्वपूर्ण एवं धार्मिक नियम होते है । छठ पूजा के नियम पूरे चार दिनों तक चलते हैं। कार्तिक शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को स्नानादि से निवृत होने के बाद ही भोजन ग्रहण किया जाता है। इसे नहाय खाय भी कहा जाता है। इस दिन कद्दू भात का प्रसाद खाया जाता है। कार्तिक शुक्ल पंचमी के दिन नदी या तालाब में पूजाकर भगवान सूर्य की उपासना की जाती है। संध्या में खरना करते हैं। खरना में खीर और बिना नमक की पूड़ी आदि को प्रसाद के रूप में ग्रहण किया जाता है। खरना के बाद निर्जल व्रत शुरू हो जाता है। कार्तिक शुक्ल षष्ठी के दिन भी व्रती महिलाएं उपवास रहती हैं और शाम नें किसी नदी या तालाब में जाकर डूबते सूर्य को अर्घ्य देती हैं। यह अर्घ्य एक बांस के सूप में फल, ठेकुआ प्रसाद, ईख, नारियल आदि को रखकर दिया जाता है। कार्तिक शुक्ल सप्तमी की भोर को उदीयमान सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। इस दिन छठ व्रत संपन्न हो जाता है और व्रती व्रत का पारण करती है।
छठ पूजा का महत्व ।
छठ पर्व श्रद्धा और आस्था से जुड़ा है। जो व्यक्ति इस व्रत को पूरी निष्ठा और श्रद्धा से करता है उसकी मनोकामनाएं पूरी होती है। छठ व्रत, सुहाग, संतान, सुख-सौभाग्य और सुखमय जीवन की कामना के लिए किया जाता है। मान्यता है कि आप इस व्रत में जितनी श्रद्धा से नियमों और शुद्धता का पालन करेंगे, छठी मैया आपसे उतना ही प्रसन्न होंगी।बिहारी महासभा के छठ महोत्सव तैयारी बैठक में अध्यक्ष ललन सिंह सचिव चंदन कुमार झा कोषाध्यक्ष रितेश कुमार पूर्व अध्यक्ष सत्येंद्र सिंह कार्यकारिणी सदस्य आलोक सिन्हा सह सचिव प्रभात कुमार रंजन कुमार शशिकांत गिरी डीके सिंह गोविंद नगर मंडल अध्यक्ष विनय कुमार मंडल सचिव गणेश साहनी कोषाध्यक्ष विजय पाल सुरेश ठाकुर दिनेश ठाकुर सहित सैकड़ों कार्यकर्ता मौजूद रहे ।